सात समंदर पार कनाडा में भले ही चार फीसदी आबादी भारतीय मूल के हैं और उनमें भी 2.1 फीसदी सिर्फ सिख हैं लेकिन वहां एक और पंजाब बसने की प्रक्रिया भी काफी जोखिम भरी और उतार-चढ़ाव वाली रही है। पिछले 20 सालों में कनाडा में सिखों की आबादी दोगुनी हो गई है। उनमें से अधिकांश पढ़ाई और नौकरी करने गए हैं। कहा जाता है कि कनाडा में सबसे पहले सिखों के जाने का सिलसिला 1897 में शुरू हुआ था, जो आज तक अनवरत जारी है।
क्या है कोमागाटा मारू
हालांकि, पंजाब से कनाडा बसने में सिखों को काफी संघर्ष भी झेलने पड़े हैं। 1914 में इसी तरह के एक संघर्ष में सिखों, हिन्दुओं और मुस्लिम समुदाय के कुल 376 लोगों को लेकर जब एक समुद्री जहाज वहां पहुंचा था, तब अंग्रेजों ने उनमें से सिर्फ 24 को उतरने दिया था और बाकी बचे 352 लोगों को वापस भेज दिया था। जिस समुद्री जहाज में ये लोग सवार होकर गए थे, उसका नाम कोमागाटा मारू ((Komagata Maru) था, जो स्टीम ईंजन से चालित था। यह जापानी जहाज था, जो कोयला ढोने का काम करता था।
गुरदित्त सिंह का था जहाज
हॉन्गकॉन्ग में रहने वाले बाबा गुरदित्त सिंह ने उस जहाज को खरीदा था और पंजाब के 376 लोगों के लेकर 4 अप्रैल, 1914 को रवाना हुए थे। जब जहाज 23 मई, 1914 के वेंकूवर (ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा) पहुंचा तो अंग्रेजों ने उनमें से सिर्फ 24 को ही उतरने दिया बाकी को वापस भेज दिया। इस जहाज में 340 सिख, 24 मुस्लिम, 12 हिंदू और बाकी ब्रिटिश थे। उस वक्त ब्रिटिश कोलंबिया पर ब्रिटिश हुकूमत था। इधर भारत और हॉन्ग-कॉन्ग भी ब्रिटिश उपनिवेश थे।